अब तो घबरा के ये कहते हैं के मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे
तुम ने ठहराई अगर गैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जायेंगे
हम नहीं वो जो करें खून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा खुदा भी तो मुकर जायेंगे
आग दोज़ख की भी हो जायेगी पानी पानी
जब ये आसी अर्क-ए-शर्म से तर जायेंगे
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे दर है , की वो देख कर दर जायेंगे
लाये जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं , दो फूल तो धर जायेंगे
नहीं पायेगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहां से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जायेंगे
पहुंचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्यूँ कर
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जायेंगे
जो मदरसे के बिगडे हुए हैं मुल्लाह
उनको मैखाने में ले आओ संवर जायेंगे
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